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Dharmik sms corner for hindu's

न तुमसा योद्धा कोई न तुमसा बुद्धिमान 
न तुमसा ज्ञानी कोई न तुमसा दया वान
न तुम में कोई घमंड न तुम में कोई अभिमान 
जो भी तुम्हारे दर पर आया पाया उसने मन पसंद वरदान
मैं मूरख हूँ अज्ञानी हूँ अब तक दूर रहा इस दर से मैं
चर्चा तेरे उपकारों की सुन कर शरण में तुम्हारी आया हूँ मैं
हे क्षमता वान, हे ज्ञानवान , हे महाबली हनुमान
मुझ शरणIर्थी को अपनी शरण में ले लो हनुमान
जो भी तुम्हारे दर पर आया पाया उसने मन पसंद वरदान
Dharmik-sms




आज मदनोत्सव और वसंतोत्सव का घालमेल हो गया है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार दोनों उत्सवों में अंतर है। मदनोत्सव होली के पर्व पर आयोजित किया जाता रहा होगा, वसंतोत्सव, वसंत पंचमी के दिन मनाया जाता था। लेकिन इस उत्सव के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा का विधान है। परन्तु कहीं-कहीं वसंत पंचमी के दिन लक्ष्मी जी की भी पूजा की जाती है और इसे श्री पंचमी भी कहा जाता है।

अपने समय के कारण वसंत पंचमी का पर्व अद्वितीय है। यह उल्लास का अनोखा पर्व है- पूरा प्राकृतिक परिवेश नैसर्गिक उल्लास से भरा होता है। यह उल्लास मानव मन के अंदर से भी स्वयं स्फूर्ति उमंग के रूप में बाहर निकलता है। शिशिर में घरों में दुबके लोग बाहर निकल पड़ते हैं — पक्षियों का कलरव वातावरण को उल्लासपूर्ण बना देता है। शीत में परिवर्तन आ जाता है। हड्डिïयों को जमा देने वाली ठंड न होकर गुलाबी धूप खिलने लगती है। यह समय ही एक ऐसा है जिसमें उल्लास और उमंग की सहज अनुभूति होती है।

वसंत पंचमी के ही दिन भगवान शिव के पांचवें मुख से एक खास किस्म का राग निकला था, जिसे ‘वसंत राग’ कहा जाता है। इस राग को आज भी समूची मधु ऋतु में गाने का रिवाज है। प्राचीन ग्रंथों में ऐसा वर्णन मिलता है कि पहले वसंतोत्सव के एक दिन पहले ही स्थान-स्थान पर वंदनवार सजाए जाते थे। पूजा की सामग्री एकत्र कर ली जाती थी। केले के स्तंभों से प्रवेशद्वार सुसज्जित किए जाते थे। पीत वस्त्र धारण किए जाते थे। कहते हैं कि वसंत पंचमी का यह त्योहार उस समय आरंभ हुआ जब भारत धन-धान्य से संपन्न था।

उस समय आज की तरह मनोरंजन के अन्य साधन उपलब्ध नहीं थे। एक मान्यता यह है कि वसंत पंचमी मनाने की शुरुआत मौर्य काल में हुई, जो गुप्त काल में एक लोकप्रिय उत्सव में बदल गया। किसानों का यह प्रिय पर्व रहा। आज भी उत्तरी भारत में वसंत पंचमी पर अनेक जगहों पर मेले जुड़ते हैं।
संस्कृत के नाटककार भास के नाटक ‘चारूदत्त’ के अनुसार वसंत के उत्सव पर लोग उमंग-उल्लास के साथ वाद्य यंत्र लेकर निकलते थे और नृत्यगान करते हुए उनकी शोभा यात्राएं नगर में निकालते थे। ‘रत्नावली’ नाटिका में मदनोत्सव व वसंतोत्सव नाम दिए गए हैं। ‘दशकुमार चरित’ में इसका चित्रण कामोत्सव के रूप में किया गया है।

भविष्य पुराण में भी ऐसा जिक्र मिलता है कि आज के दिन काम और रति की प्रतिमा तैयार कर दोनों की पूजा की जाती है उन दिनों मदनोत्सव का आयोजन अंत:पुर में होता था और अंत:पुर वासी परस्पर हास्य-विनोद और मनोविनोद करते थे।

भवभूमि के ‘मालती माधव’ में इसका उल्लेख इस प्रकार मिलता है कि इस दिन लोग उपवनों में विहार करते थे और मदन देव की पूजा की जाती थी। अंत-पुर में अशोक वृक्ष के तले मदन पूजा होती थी। ‘मालविकाग्निमित्रम्’ की नायिका रानी सज-संवर कर पैरों में महावर रचकर सुहाग नूपुर बांधे अपने बायें चरण से अशोक वृक्ष पर आघात करती हैं जिससे पूरा वृक्ष पुष्पगुच्छों से भर उठता है।
वसंत ऋतु का सबसे प्रमुख संदेश यह है कि जीवन में अविरल चलने वाले को ही वास्तविक आनंद प्राप्त होता है। उन्हीं क्षणों में ऋषि मुख से कविता छंदों में प्रवाहित होने लगती है। तभी भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अपने स्वरूपों का वर्णन करते हुए कहा है : ‘ऋतुनांकुसुमाकर’: ‘अर्थात ऋतुओं में मैं वसंत हूं।’



सुनो राधे,
प्रेम नाम है, त्याग और तपस्या का.
प्रेम नाम है, एक - दूसरे पर अटूट विश्वास का.
प्रेम नाम है, एक - दूसरे के सुख में सुखी और दुःख में दुखी होने का.
प्र...ेम नाम है, एक सुखद अहसास का.
प्रेम नाम है, दिल से दिल के मिलन का.
प्रेम नाम है, विरह में भी आनंद अश्रु का.
प्रेम नाम है, राधा और 


या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥

जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें..!!
 
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